देवास
नगर निगम में प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ, पंचक के समान पांच भ्रष्ट अधिकारियों की टोली, अपने भ्र्रष्ट आचरण के चलते पिछले करीब 15 वर्षों से शहर के विकास और व्यवस्था को बट्टा बिठाने में लगी हुई है। इन अधिकारियों की पहुंच इतनी अधिक है कि निगम प्रशासन भी चाहकर इन पर नकेल कसने में नाकाम है और  हिचकिचा रहा है।

24 अप्रैल 2006 को नगरीय प्रशासन विभाग की अपर सचिव अनुभा श्रीवास्तव द्वारा, राज्य शासन की और से भेजे गए पत्र क्रमांक एफ 4-/29/2006/18-1 पर देवास विकास प्राधिकरण से पांच अधिकारी नगर निगम में भेजे गए थे। नगर निगम अधिनियम 1956 की धारा 58 के अन्तर्गत प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए तत्काल प्रभाव से प्रतिनियुक्ति पर आए ये पांच अधिकारी कार्यपालन यंत्री आशुतोष कानुनगो, सहायक यंत्री बीएम गुप्ता, उपयंत्री एम बैग, उपयंत्री जगदीश वर्मा, उपयंत्री सतीश मुंगी प्रतिनियुक्ति पर निगम में आए और वहीं के होकर रह गए। इनमें से आशुतोष कानुनगो, जगदीश वर्मा और दूसरे पत्र के माध्यम से प्रतिनियुक्ति पर आए शाहिद अली ने निगम के परियोजना विभाग पर एकछत्र साम्राज्य स्थापित कर लिया। निगम में कोई भी कमिश्नर आये, ये अधिकारी...उन्हें अपना भागीदार बना लेते हैं। अनेक योजनाओं का संचालन किया और जमकर भ्रष्टाचार करते हुए शासन व जनता का माल बटोरा। जमीन पर देखने पर इन अधिकारियों द्वारा संचालित या क्रियांवित राजीव गांधी आवास योजना, प्रोजेक्ट उत्थान, मुख्यमंत्री अधोसंरचना फसर््ट-सेकंड, आईएचएसडीपी योजना,  क्षिप्रा डैम पर पिंचींग की एसआईडीएम योजना, अमृत योजना या फिर बहुचर्चित सीवरेज योजना, कोई योजना कारगर नहीं हुई।

सीवरेज योजना को प्रारंभ हुए शहर में करीब 6 वर्ष हो गए हैं, लेकिन आज तक सफल नहीं हो पाई। शहर में 6 वर्षो से कभी यहां तो कभी वहां, कहीं खुदाई का तो कहीं भराव का काम चलता ही रहता है। इस कारण से आवागमन में बाधा उत्पन्न होती रहती है। कई स्थानों पर सीवरेज के खुले चैंबरों से गंदगी रिसती रहती है। चैंबरों की गंदगी लोगों के घरों में पहुंच जाती है। इसको लेकर आये दिन किसी न किसी क्षेत्र के रहवासी आंदोलन, प्रदर्शन या नगर निगम में शिकायत करने पहुंचते रहते हैं। गत दिवस ही वार्ड क्रमांक 20 में ठेकेदार एवं सीवरेज के इंजीनियरिंग अधिकारियों से रहवासियों की तीखी नोंकझोक हुई। यहां 15 दिन पूर्व एक बच्चा भी सीवरेज के गड्ढे में गिर गया था। सीवरेज योजना में भ्रष्टाचार की जांच को लेकर पांच पाषदों की एक टीम भी नगर निगम में गठित की गई थी। इस टीम में 3 भाजपा और 2 कांग्रेस के पार्षद शामिल थे। टीम द्वारा 33 बिंदुओं पर जांच की गई थी। टीम द्वारा की गई जांच को आज तक दबाया जा रहा है।  

पूर्व में इन अधिकारियों के मुखिया, कार्यपालन यंत्री आशुतोष कानुनगो के काले कारनामों को पार्षदों की टोली, निगम परिषद की बैठक में भी उजागर कर चुकी है। इतना ही नहीं पूर्व की भाजपा सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री रहे लाल सिंह आर्य को भी पाषदों द्वारा इन अधिकारी के विरुद्ध तथ्यों सहित दस्तावेज सौंपे गए थे। जिस पर कार्यपालन यंत्री कानुनगो का इंदौर तबादला हुआ और एम बैग अपने मुखिया के जाते ही प्राधिकरण पहुंच गए। बाकी अभी भी निगम में ही जमे हुए हैं।

गौर करने वाली बात यह है कि प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए इन अधिकारियों को न तो उनके मूल विभाग ने वापस बुलाया और न ही नगरीय प्रशासन विभाग ने उन्हें वापस विभाग में भेजा। इन अधिकारियों के वेतन मामले में निगम का आॅडिट विभाग भी संदेह के घेरे में है। छोटी से छोटी राशि के बिल पर आपत्ति लिखने वाला आॅडिट विभाग इस पर क्यों चुप है कि प्रतिनियुक्ति पर आए इन अधिकारियों का मानदेय कहां से या किस मद से दिया जा रहा है।   

 

Source : Agency